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तेजस्वी ने ओवैसी को दिखाया “ना”, बिहार में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तेज़

New Delhi: बिहार की राजनीति एक बार फिर नए समीकरणों की ओर बढ़ रही है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच बनता दिख रहा संभावित गठबंधन अब टूट चुका है। सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ने अंतिम क्षणों में ओवैसी के साथ हाथ मिलाने से […]

New Delhi: बिहार की राजनीति एक बार फिर नए समीकरणों की ओर बढ़ रही है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच बनता दिख रहा संभावित गठबंधन अब टूट चुका है। सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ने अंतिम क्षणों में ओवैसी के साथ हाथ मिलाने से इनकार कर दिया है, जिससे ओवैसी को बिहार चुनाव में एक बार फिर अकेले मैदान में उतरना पड़ सकता है।

तेजस्वी की इस राजनीतिक चाल से बिहार की चुनावी बिसात पर एक नया मोड़ आ गया है। जहां एक ओर महागठबंधन में ओवैसी की एंट्री के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर अब तीसरे मोर्चे की संभावनाएं जोर पकड़ रही हैं।
2020 में सीमांचल में किया था प्रदर्शन, लेकिन विधायक टूटे।

ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र की 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि बाद में चार विधायक RJD में शामिल हो गए। इस बार ओवैसी महागठबंधन का हिस्सा बनकर अपने विधायकों को ‘सुरक्षित’ रखना चाहते थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने राजनीतिक संतुलन और मुस्लिम वोट बैंक पर नियंत्रण की रणनीति के तहत दूरी बना ली।

वक्फ कानून बना दूरी की वजह?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वक्फ कानून को लेकर मुस्लिम समुदाय में गुस्सा है और तेजस्वी चाहते हैं कि इसका सीधा फायदा उन्हें और कांग्रेस को मिले, न कि ओवैसी को। अगर ओवैसी को साथ लिया जाता, तो सीमांचल में RJD की मुस्लिम पकड़ कमजोर हो सकती थी। लिहाज़ा तेजस्वी ने गठबंधन की संभावनाओं को विराम दे दिया।

क्या बिहार में बनेगा तीसरा मोर्चा?

अब सवाल उठ रहा है कि ओवैसी आगे क्या करेंगे? सूत्र बताते हैं कि वे फिर से 2020 की तर्ज पर कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर सीमांचल में चुनावी गठजोड़ बना सकते हैं, जिससे बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना बनी हुई है। AIMIM के बिहार प्रमुख और विधायक अख्तरुल ईमान भी इसी दिशा में बयान दे चुके हैं।

बीजेपी को भी नुकसान?

तेजस्वी-ओवैसी गठजोड़ की अटकलों पर बीजेपी नजर बनाए हुए थी, क्योंकि इससे ध्रुवीकरण का मुद्दा तेज हो सकता था। लेकिन अब जब दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं, तो बीजेपी के लिए भी राजनीतिक गणित में बदलाव तय है। ध्रुवीकरण की धार कुंद हो गई है और सीमांचल में बीजेपी की राह भी अब पहले से आसान नहीं रही।

तेजस्वी की चाल: सीमांचल में ‘विन-विन’ की तैयारी

तेजस्वी यादव की रणनीति यह संदेश देती है कि वे सीमांचल के मुस्लिम वोट बैंक को ओवैसी के बिना साधने की योजना पर काम कर रहे हैं। इससे उन्हें 2025 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय बढ़त मिल सकती है।

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