Kalkaji Asha Kiran Apartment: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित दिल्ली के कालकाजी एक्सटेंशन गोविंदपुरी पॉकेट-ए स्थित आशा किरण अपार्टमेंट्स की तस्वीर अब डराने लगी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ योजना के तहत बसाए गए इन फ्लैट्स की हालत महज ढाई साल में ही जर्जर हो गई है। हालात यह हैं कि अपार्टमेंट अब फिर से झुग्गियों की शक्ल ले रहे हैं, और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ सरकारी एजेंसियां ही नहीं, बल्कि यहां रहने वाले लोग भी हैं।
गंदगी, सीलन और टूटी व्यवस्था
स्थानीय निरीक्षण में सामने आया कि अपार्टमेंट्स में दीवारें पान की पीकों से रंगी पड़ी हैं, कूड़ा हर ओर फैला है, और शराब की खाली बोतलें आमतौर पर परिसर में पड़ी रहती हैं। अपार्टमेंट के लगभग हर फ्लैट में सीलन की समस्या है। घरों की दीवारों में दरारें आ चुकी हैं, और पानी सप्लाई इतना गंदा है कि पीने के लिए नीचे आरओ से पानी भरना पड़ता है।
झुग्गी से अच्छा था पुराना घर”- निवासियों की पीड़ा
रीता मिस्त्री, जो यहां भूमिहीन कैंप से विस्थापित होकर आई हैं, बताती हैं कि उनके पुराने झुग्गी में बना मकान तीन मंजिला था, जिसे बनाने में 40 साल लगे थे। लेकिन सरकार ने उसे तुड़वा दिया और बदले में यह अपार्टमेंट दिया, जहां कभी लिफ्ट खराब हो जाती है तो कभी गंदा पानी आता है।
मालिनी, एक अन्य निवासी, बताती हैं कि यहां 1200 से ज्यादा लोग रह रहे हैं, लेकिन न सफाई है न कोई सुनवाई। गंदगी उठाने कोई नहीं आता। शिकायतें करने पर भी DDA और MCD के अधिकारी झांकने नहीं आते।
“लोगों ने खुद बना दिया अपार्टमेंट को झुग्गी”- जिम्मेदारी किसकी
स्थानीय निवासी हिमांशु राणा स्पष्ट कहते हैं कि अपार्टमेंट की बदहाली के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं। उनका कहना है, “सरकार ने करोड़ों की कीमत वाले फ्लैट मुफ्त में दिए हैं, लेकिन लोगों ने उसका रखरखाव नहीं किया। कोई दीवारों पर थूकता है, कोई कूड़ा जहां-तहां फेंकता है, तो कोई घर के अंदर दुकान खोलकर बैठ गया है।”
बच्चों की मासूम राय
बच्चे मयंक और हिमांशु कहते हैं, “हमें तो अपनी झुग्गी अच्छी लगती थी। शायद इसलिए क्योंकि अपार्टमेंट में न खेलने की जगह है, न ही सुरक्षित माहौल।
निष्कर्ष-
दिल्ली में झुग्गी हटाकर फ्लैट देना एक सराहनीय पहल है, लेकिन जब व्यवस्थाएं टूटी हों और नागरिकों में जिम्मेदारी की भावना न हो, तो कोई भी योजना फेल हो सकती है। आशा किरण अपार्टमेंट इसका जीवंत उदाहरण है-जहां न सरकार ने पर्याप्त निगरानी की, न ही नागरिकों ने नए जीवन को अपनाने की कोशिश की। समस्या सिर्फ सिस्टम की नहीं, समाज की भी है।