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बयान बवाली: ओम शांति नहीं, अब ‘ओम क्रांति’! गिरिराज सिंह के बोल से गरमाई बिहार की सियासत

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक बार फिर बयानबाजी के तूफान में घिर गई है। इस बार सियासी गर्मी की वजह बने हैं केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह, जिन्होंने साधु-संतों से ‘ओम शांति’ की जगह ‘ओम क्रांति’ का नारा अपनाने की अपील की है। विधानसभा चुनाव से पहले यह बयान राजनीतिक हलकों […]

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक बार फिर बयानबाजी के तूफान में घिर गई है। इस बार सियासी गर्मी की वजह बने हैं केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह, जिन्होंने साधु-संतों से ‘ओम शांति’ की जगह ‘ओम क्रांति’ का नारा अपनाने की अपील की है। विधानसभा चुनाव से पहले यह बयान राजनीतिक हलकों में भूचाल की तरह देखा जा रहा है।

गिरिराज सिंह ने बेगूसराय की एक जनसभा में बोलते हुए कहा, “यह समय अधर्म के खिलाफ खड़े होने का है। अब संतों को शांति नहीं, बल्कि क्रांति का मार्ग अपनाना चाहिए।” उन्होंने बिना किसी का नाम लिए विपक्ष को ‘असुर’ करार दिया, जिससे विरोधी खेमे में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।

JDU ने बनाई दूरी, विपक्ष ने बोला हमला

गिरिराज सिंह के इस बयान पर जहां कांग्रेस ने बीजेपी को ‘असूरी शक्ति’ करार दिया, वहीं एनडीए की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने फौरन दूरी बना ली। जेडीयू नेताओं ने स्पष्ट किया कि यह गिरिराज सिंह का “निजी विचार” है और पार्टी इससे सहमत नहीं है।

संत नहीं, सियासत में क्रांति की गूंज

साधु-संतों के लिए ‘ओम क्रांति’ का नारा देना एक धार्मिक भावनात्मक अपील हो सकती है, लेकिन इसका राजनीतिक अर्थ भी गहरा है। जानकारों का मानना है कि यह बयान हिंदू वोट बैंक को सीधे तौर पर साधने की कोशिश है। बीजेपी समर्थक इसे धर्म की रक्षा की पुकार मान रहे हैं, जबकि विरोधी इसे सामाजिक समरसता को तोड़ने वाला बयान बता रहे हैं।

नीतीश खेमे में खामोशी, बीजेपी में जोश

गिरिराज सिंह के इस बयान ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच जोश भर दिया है, लेकिन जेडीयू खेमे में साफ खामोशी देखी जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब तक इस मसले पर चुप हैं, लेकिन उनके सियासी समीकरणों को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं। जानकारों की मानें तो नीतीश की अगली चाल क्या होगी, इसे लेकर बीजेपी और जेडीयू दोनों में उहापोह की स्थिति है।

राजनीति में ‘असुर’, ‘अधर्म’ और ‘क्रांति’ का दौर

चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, नेताओं के भाषणों की भाषा और भी तीखी होती जा रही है। बयान अब धर्म, अधर्म, असुर और क्रांति जैसे प्रतीकों में बदलते जा रहे हैं, जो यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार की चुनावी जंग अब वैचारिक से अधिक वैचारिक-धार्मिक हो चली है।

नजरें अब आगे की राजनीति पर

‘बयान बवाली’ की इस पहली कड़ी से साफ है कि चुनाव से पहले राजनीतिक दल सिर्फ नीतियों और विकास के मुद्दों पर नहीं, बल्कि भावनात्मक और धार्मिक नारों के जरिए भी मैदान गर्म कर रहे हैं। गिरिराज सिंह का यह बयान कितना असर डालता है और क्या यह जेडीयू-बीजेपी के रिश्तों में तनाव लाता है, इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा।

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