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बक्सर का भेलूपुर गांव, जहां से शुरू हुआ पहली भारतीय मूल की महिला प्रधानमंत्री का सफर

PM Modi Foreign Visit: बिहार के छोटे से गांव भेलूपुर में इन दिनों एक अलग ही उत्साह है। यह गांव किसी स्थानीय नेता या चुनावी जीत की वजह से नहीं, बल्कि त्रिनिदाद और टोबैगो की पूर्व प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर के पैतृक गांव के रूप में एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में प्रधानमंत्री […]

PM Modi Foreign Visit: बिहार के छोटे से गांव भेलूपुर में इन दिनों एक अलग ही उत्साह है। यह गांव किसी स्थानीय नेता या चुनावी जीत की वजह से नहीं, बल्कि त्रिनिदाद और टोबैगो की पूर्व प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर के पैतृक गांव के रूप में एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात ने इस गांव के लोगों को गर्व और उम्मीद से भर दिया है।

गिरमिटिया इतिहास से प्रधानमंत्री बनने तक

भेलूपुर गांव, बक्सर जिले के इटाढ़ी प्रखंड में स्थित है, जिसकी आबादी करीब 1127 है। कमला बिसेसर का जन्म त्रिनिदाद में हुआ था, लेकिन उनके पूर्वज- विशेष रूप से उनके परदादा पंडित राम लखन मिश्रा- 1880-90 के दशक में गिरमिटिया मजदूर के रूप में कोलकाता पोर्ट से ‘वोल्गा’ नामक जहाज द्वारा त्रिनिदाद पहुंचे थे।

आज वही परिवार, जो कभी रोज़गार की तलाश में समुद्र पार गया था, विश्व राजनीति के केंद्र में पहुंच चुका है। वर्ष 2010 में कमला बिसेसर त्रिनिदाद और टोबैगो की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और शिक्षा व कानून के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया।

‘प्रधानमंत्री बेटी, आपका इंतज़ार है’

गांव में खुशी का माहौल तब और बढ़ गया जब पीएम मोदी से कमला बिसेसर की हालिया भेंट हुई। गांव के लोगों ने कहा “जल्द आइए प्रधानमंत्री बेटी, हम कर रहे हैं आपका इंतजार।” उनके रिश्तेदार जगदीश मिश्रा भावुक होते हुए बताते हैं, “2012 में जब वह गांव आई थीं, तो मुझे अंकल कहकर गले लगाई थीं। उन्होंने गांव को नहीं भूला।

खुशी के बीच अधूरी उम्मीदें

गांव की टूटी सड़कें, कच्चे मकान और बुनियादी सुविधाओं की कमी आज भी विकास की जरूरतों को उजागर करती हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी पर्याप्त नहीं हैं। लेकिन ग्रामीणों को उम्मीद है कि इस अंतरराष्ट्रीय संबंध से गांव की किस्मत बदल सकती है।

एक प्रेरणादायक विरासत

कमला बिसेसर की कहानी सिर्फ एक महिला की सफलता की गाथा नहीं, बल्कि उस भारतीय विरासत की पहचान है जो दुनिया के कोनों-कोनों तक फैली है। वह एक प्रेरणा हैं कि जड़ें चाहे कितनी भी दूर हों, पहचान मिटती नहीं। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी हर प्रवासी भारतीय और देश के युवाओं के लिए एक सबक है।

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