Bihar Election 2025: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे को लेकर सियासत गरमा गई है। जहां आधिकारिक रूप से स्वास्थ्य कारणों को इस्तीफे की वजह बताया गया है, वहीं कांग्रेस ने इसे महज दिखावा करार देते हुए गंभीर राजनीतिक संकेतों की ओर इशारा किया है। पार्टी नेताओं का दावा है कि यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की रणनीति का हिस्सा है, जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़ा है।
कांग्रेस सांसद मल्लू रवि ने आरोप लगाया कि “सरकार बिहार चुनाव से पहले धनखड़ से छुटकारा पाना चाहती थी, ताकि किसी ऐसे नेता को इस पद पर लाया जा सके जो ओबीसी वोटबैंक को साध सके।” उन्होंने इसे ‘शारीरिक नहीं, राजनीतिक सेहत’ से जुड़ा मामला बताया।
इसी सुर में बोलते हुए कांग्रेस नेता दानिश अली ने सवाल उठाया कि क्या वाकई स्वास्थ्य कारण ही धनखड़ के इस्तीफे का एकमात्र कारण हैं? उन्होंने कहा कि हाल ही में कुछ भाजपा नेता उपराष्ट्रपति के गरिमामय पद के खिलाफ बयानबाज़ी कर रहे थे। साथ ही, न्यायमूर्ति यादव और वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव पर सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच मतभेद की चर्चा भी सामने आई थी।
जेबी माथेर, कांग्रेस की एक और सांसद ने इसे “बहुत चौंकाने वाला और अप्रत्याशित कदम” बताया। उन्होंने कहा, “धनखड़ जी ने आज सुबह तक राज्यसभा की कार्यवाही सुचारु रूप से संचालित की थी। ऐसे में उनका अचानक इस्तीफा हैरान करने वाला है।”
क्या ‘ऑपरेशन बिहार’ की शुरुआत?
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि जेडीयू नेता और राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, जो बिहार से आते हैं, उपराष्ट्रपति पद के लिए सरकार की पसंद हो सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का यह संदेह और गहरा हो जाता है कि यह इस्तीफा बिहार चुनाव के मद्देनज़र एक सुनियोजित कदम है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ ‘दबाव’ वाला बयान
इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति धनखड़ का एक पुराना वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, जिसमें वे कहते हैं, “ना मैं दबाव देता हूं, ना दबाव में आता हूं, ना दबाव में काम करता हूं।” यह बयान उन्होंने हाल ही में जयपुर में एक कार्यक्रम में दिया था, जब अशोक गहलोत ने उन पर ‘दबाव में काम करने’ का आरोप लगाया था।
विपक्ष का आरोप- सरकार बना रही संस्थाओं को निशाना
कांग्रेस समेत कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि मोदी सरकार एक “अघोषित इमरजेंसी” लागू कर रही है, और अब उपराष्ट्रपति पद तक को राजनीति का साधन बना लिया गया है। उनका आरोप है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी अब सरकार के दबाव में काम करने को मजबूर हैं।
फिलहाल, उपराष्ट्रपति पद खाली है और संविधान के अनुसार 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कराया जाना अनिवार्य है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस पद के लिए अगला चेहरा कौन होगा और क्या वाकई यह बिहार चुनाव से जुड़ी कोई सियासी बिसात है।
न्यूज़ एडिटर बी के झा की रिपोर्ट-