Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में एनडीए खेमे के भीतर सीट बंटवारे को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच जहां आपसी समन्वय और संतुलन साधने की कोशिश जारी है।
वहीं गठबंधन के सहयोगी दलों- लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा की मांगों ने तस्वीर को और जटिल बना दिया है।
जेडीयू-बीजेपी- एक-एक सीट का अंतर बना ‘सम्मान का प्रश्न’
सूत्रों के अनुसार, एनडीए की रणनीति यह है कि कुल 243 विधानसभा सीटों में से 201 से 205 सीटों पर जेडीयू और बीजेपी मिलकर चुनाव लड़ेंगी। इसमें भी एक मौन सहमति यह है कि जेडीयू को हमेशा बीजेपी से एक सीट अधिक दी जाए, चाहे वह 101-102 का फॉर्मूला हो या 102-103 का। 2020 में जेडीयू ने 115 और बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
छोटे दल, बड़ी उम्मीदें: एलजेपी-आर, हम और आरएलएम की मांगें
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान 30 विधानसभा सीटों के साथ एक राज्यसभा सीट की भी मांग कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि वे अपनी मां रीना पासवान को उच्च सदन भेजना चाहते हैं।
इसके अलावा डिप्टी सीएम पद की भी चर्चा है, जिसमें चिराग की ओर से अरुण भारती का नाम प्रस्तावित किया जा सकता है। हालांकि बीजेपी उन्हें 18–22 सीटें देने के पक्ष में है और एक राज्यसभा सीट के एवज में थोड़ी कटौती की अपेक्षा कर रही है।
वहीं जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ को 7 से 9 सीटें मिल सकती हैं। मांझी खुद को 2020 से ज्यादा मजबूत स्थिति में मान रहे हैं और एनडीए को यह याद दिला रहे हैं कि उनकी जाति मुसहर का वोट ट्रांसफर रिकॉर्ड पासवान वोट बैंक से बेहतर रहा है।
उपेंद्र कुशवाहा को भी बीजेपी 7 से 9 सीटों के रेंज में रखने के पक्ष में है। बताया जा रहा है कि उन्हें केंद्र में मंत्री पद की पेशकश की जा सकती है, जिससे सीटों को लेकर ज़िद टाली जा सके।
जातीय समीकरण और जमीनी पकड़ बनी चुनौती
एनडीए के भीतर कई सीटों पर दो या तीन दलों का दावा है। इन विवादों को सुलझाने के लिए जातीय समीकरणों और 2020 के प्रदर्शन के आधार पर आकलन किया जा रहा है। शाहाबाद क्षेत्र में विशेष फोकस रखा गया है, जहां 2020 और 2024 में एनडीए को निराशा हाथ लगी थी।
सहनी फैक्टर: अंतिम वक्त में पलटी की आशंका
मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी के भविष्य को लेकर एनडीए सतर्क है। महागठबंधन में उनकी अधिक सीटों की मांग पूरी नहीं हुई तो वे फिर पाला बदल सकते हैं, जैसा उन्होंने 2020 में किया था। ऐसे में एनडीए तब तक फाइनल बंटवारे की घोषणा नहीं करना चाहता, जब तक विपक्षी महागठबंधन अपने हिस्से की सीटें तय नहीं कर लेता।
निष्कर्ष
बिहार में एनडीए के भीतर सीट बंटवारा सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि राजनीतिक संतुलन, जातीय समीकरण और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का जटिल समीकरण बन गया है।
नीतीश और बीजेपी की जोड़ी जहां गठबंधन को सहेजने की कोशिश में है, वहीं छोटे दल अपनी शर्तों पर टिके हुए हैं। अंतिम फैसले के लिए अब निगाहें दिल्ली और पटना के बीच होने वाली अगली बड़ी राजनीतिक बैठक पर टिकी हैं।
न्यूज़ एडिटर बी के झा की रिपोर्ट-