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शकूर बस्ती का नाम बदलकर बनेगा ‘श्री रामपुरम’, दिल्ली में फिर छिड़ा नाम बदलने का सियासी संग्राम

Delhi Shakur Basti Renamed: दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर नाम बदलने की बहस तेज़ हो गई है। इस बार मामला शकूर बस्ती विधानसभा क्षेत्र का है, जिसे अब ‘श्री रामपुरम’ नाम दिए जाने की मांग उठाई जा रही है। इस मुहिम की अगुवाई खुद क्षेत्रीय विधायक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता करनैल […]

Delhi Shakur Basti Renamed: दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर नाम बदलने की बहस तेज़ हो गई है। इस बार मामला शकूर बस्ती विधानसभा क्षेत्र का है, जिसे अब ‘श्री रामपुरम’ नाम दिए जाने की मांग उठाई जा रही है। इस मुहिम की अगुवाई खुद क्षेत्रीय विधायक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता करनैल सिंह कर रहे हैं।

विधायक करनैल सिंह का कहना है कि यह मांग स्थानीय निवासियों की आस्था और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी हुई है। उन्होंने दावा किया कि अब तक 60,000 से अधिक लोगों के हस्ताक्षर इस प्रस्ताव के समर्थन में एकत्र किए जा चुके हैं, और जल्द ही यह संख्या 1 लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य है ताकि इसे औपचारिक रूप से दिल्ली सरकार के समक्ष रखा जा सके।

“श्री रामपुरम” नाम की धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

विधायक के अनुसार, “श्री रामपुरम नाम न केवल स्थानीय लोगों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को भी सम्मान देने की एक कोशिश है।” उन्होंने इसे जनभावनाओं से प्रेरित अभियान बताया। हालांकि, इस प्रस्ताव पर स्थानीय लोगों की राय बंटी हुई नज़र आ रही है। कुछ लोग इसे इलाके के गौरव और पहचान से जोड़कर देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे गैर-ज़रूरी कदम मानते हुए प्राथमिक समस्याओं से ध्यान भटकाने वाला बता रहे हैं।

पहले भी उठ चुकी हैं ऐसी मांगें

यह कोई पहला मौका नहीं है जब दिल्ली के किसी इलाके का नाम बदलने की बात सामने आई हो। इससे पहले नजफगढ़ को ‘नाहरगढ़’, मुस्तफाबाद को ‘शिव विहार’, और मोहम्मदपुर को ‘माधवपुर’ नाम देने की मांगें उठ चुकी हैं। कई इलाकों में हस्ताक्षर अभियान भी चलाए गए, लेकिन अब तक कोई भी प्रस्ताव आधिकारिक मंजूरी नहीं पा सका है।

नामकरण की राजनीति या सांस्कृतिक पुनर्जागरण?

नाम बदलने की इस पहल ने एक बार फिर राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है। भाजपा समर्थक इसे “सांस्कृतिक पुनर्जागरण” और “भारतीय पहचान की बहाली” का प्रयास मानते हैं। वहीं, विपक्षी दलों ने इस मुहिम को ‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’ का प्रयास बताया है।

विपक्ष का आरोप है कि सरकार असली मुद्दों जैसे बेरोज़गारी, महंगाई और बुनियादी सुविधाओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए प्रतीकात्मक फैसले कर रही है।

आगे क्या-

अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या दिल्ली सरकार इस प्रस्ताव पर विचार करेगी या यह भी पिछले प्रस्तावों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा। फिलहाल, नाम बदलने की इस बहस ने एक बार फिर दिल्ली के सियासी तापमान को गर्मा दिया है।

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