India Afghan Relation: तालिबानी विदेश मंत्री मुत्ताकी का देवबंद दौरा, जानें क्यों है अहम

India Afghan Relation: तालिबानी विदेश मंत्री मुत्ताकी का देवबंद दौरा, जानें क्यों है अहम

India Afghan Relation: जानकारी के मुताबिक आज देवबंद दारुल उलूम पहुंचेगे अफगानिस्तान (तालिबान ) के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी करीब 11:00 बजे के करीब देवबंद पहुंचेंगे। दारुल उलूम के छात्र आमिर खान का स्वागत करेंगे। दारुल उलूम में इस समय अफगानिस्तान के 15 छात्र पढ़ते हैं।

India Afghan Relation: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी आज यानि शनिवार को देवबंद दौरे पर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक वे देवबंद पहुंच चुके हैं। दारुल उलूम के मोहतमिम (VC) मुफ्ती अब्दुल कासिम नोमानी मौलाना, मौलाना अरशद मदनी समेत कई दूसरे मदरसा टीचर से उनकी मुलाकात होगी।

मुत्ताकी पूरे दारुल उलूम में घूमेंगे और मस्जिद भी जाएंगे। इस दौरान क्लास रूम में बैठकर हदीस की पढ़ाई को देखेंगे। 2 बजे से 4 बजे तक मुत्ताकी और मौलाना अरशद मदनी समेत गई टीचर्स की तकरीर होगी।

देवबंद में अफगानिस्तान के छात्र

जानकारी के मुताबिक आज देवबंद दारुल उलूम पहुंचेगे अफगानिस्तान (तालिबान ) के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी करीब 11:00 बजे के करीब देवबंद पहुंचेंगे। दारुल उलूम के छात्र आमिर खान का स्वागत करेंगे। दारुल उलूम में इस समय अफगानिस्तान के 15 छात्र पढ़ते हैं। सन 2000 के बाद बनाए गए सख्त वीज़ा नियमों की वजह से अफगानिस्तान के छात्रों की तादाद कम हो गई थी। पहले सैकड़ो छात्र दारुल उलूम में पढ़ाई करने के लिए आते थे।

बता दें कि तालिबान मदरसों और इस्लामी विचार के लिहाज से दारुल उलूम को अपना आदर्श मानता है। दारुल उलूम से पढ़ने वाले छात्रों को मौजूदा अफगानिस्तान सरकार की नौकरियों में भी तरजीह दी जाती है। इससे पहले 1958 में अफगानिस्तान के बादशाह रहे मोहम्मद ज़ाहिर शाह दारुल उलूम आए थे। जाहिर शाह के नाम से दारुल उलूम में एक गेट भी बनाया हुआ हैं जिसका नाम बाब ए ज़ाहिर। 

धार्मिक और कूटनीतिक दृष्टि 

तालिबान नेता यह दौरा धार्मिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। यह यात्रा पाकिस्तान के उस दावे को चुनौती देती है, जिसमें पाकिस्तान खुद को देवबंदी इस्लाम का संरक्षक और तालिबान का मुख्य समर्थक बताता है। मुत्ताकी की देवबंद यात्रा से यह संदेश जाता है कि तालिबान की धार्मिक जड़ें भारत में हैं, न कि पाकिस्तान में। 

इसका मतलब है कि तालिबान अपनी राजनीति और कूटनीति में पाकिस्तान पर निर्भरता कम करके भारत की तरफ रुख कर रहा है। 1866 में देवबंद की नींव रखी गई और यह दारुल उलूम जैसे इस्लामी संस्थान का जन्मस्थल है। 

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