Patna Murder Case: राजधानी पटना के प्रतिष्ठित पारस हॉस्पिटल में दिनदहाड़े हुई कुख्यात अपराधी चंदन मिश्रा की हत्या ने न सिर्फ बिहार की कानून-व्यवस्था को बेनकाब किया है, बल्कि इस घटना ने अपराध और राजनीति के गठजोड़ की एक गहरी साजिश की तरफ भी इशारा कर दिया है।
हत्याकांड के बाद हुई पुलिसिया कार्रवाई और गिरफ्तारी की कवायद के बावजूद कई सवाल आज भी बिहार के आम नागरिकों को डरा रहे हैं।
हत्या की पटकथा- शूटर्स की प्लानिंग और अस्पताल के भीतर की रेकी
17 जुलाई की सुबह पारस अस्पताल के कमरा नंबर 209 में भर्ती चंदन मिश्रा को छह हथियारबंद अपराधियों ने गोलियों से भून डाला। सीसीटीवी फुटेज में यह साफ देखा जा सकता है कि अपराधी बेहद इत्मीनान से अस्पताल में दाखिल होते हैं, हत्या को अंजाम देते हैं और फिर निकलते वक्त रास्ते में जश्न भी मनाते हैं- जैसे कि उन्हें किसी का कोई डर नहीं हो।
जांच में यह भी सामने आया कि मुख्य साजिशकर्ता तौसीफ बादशाह ने पहले अस्पताल की पूरी रेकी की थी। वह पहले भी अपने एक साथी का इलाज वहीं करवा चुका था, जिससे अस्पताल की भौगोलिक स्थिति और सुरक्षा इंतजामों की जानकारी उसे अच्छी तरह थी। दरअसल, अस्पताल के इमरजेंसी गेट से रोके जाने के बाद शूटर्स OPD के रास्ते से भीतर दाखिल हुए और सीधा 209 नंबर कमरे की ओर गए। वहां लॉक में खराबी का फायदा उठाकर उन्होंने दरवाजा खोला और चंदन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी।
पुलिस की ‘नींद’ टूटी तो गिरे कई वर्दी वाले
हत्या के बाद पटना पुलिस हरकत में तो आई, लेकिन देर से। एसएसपी पटना के निर्देश पर शास्त्री नगर थाना के 1 इंस्पेक्टर, 2 सब-इंस्पेक्टर और 2 सिपाही समेत चार थानों के कई पुलिसकर्मियों को लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया। इनमें गांधी मैदान, सचिवालय और गर्दनीबाग थाने के गश्त पर तैनात इंस्पेक्टर भी शामिल हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल सस्पेंशन से जवाबदेही तय हो जाएगी? क्या इस लापरवाही के पीछे राजनीतिक दबाव या अंदरूनी साठगांठ थी?
गिरफ्तारियां और बंगाल कनेक्शन: तौसीफ के पीछे बिहार पुलिस और STF
हत्या के बाद मुख्य आरोपी तौसीफ बादशाह गयाजी होते हुए पश्चिम बंगाल भाग निकला। सूत्रों के अनुसार, बिहार पुलिस और एसटीएफ की संयुक्त टीम ने वहां कई शूटर्स को गिरफ्तार किया है, हालांकि अब तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। वहीं, पुरुलिया जेल में बंद शेरू सिंह से भी पूछताछ हुई है, जो पहले चंदन मिश्रा का साथी रह चुका है, लेकिन बाद में दोनों की राहें अलग हो गई थीं और आपसी दुश्मनी जन्म ले चुकी थी।
ADG (मुख्यालय) कुंदन कृष्णन ने खुद माना है कि यह हत्या शेरू सिंह गैंग की साजिश थी, जो वर्षों से चंदन के खिलाफ बदला लेना चाह रहा था।
राजनीतिक गठजोड़: अपराध की छाया में चुनावी चालें
हत्या की पृष्ठभूमि जितनी आपराधिक है, उससे कहीं ज़्यादा इसकी राजनीतिक परछाई चिंताजनक है। सूत्रों की मानें तो मुख्य शूटर तौसीफ बादशाह का संबंध पशुपति पारस की पार्टी से रहा है। पारस, जो वर्तमान में महागठबंधन के सहयोगी हैं, जल्द ही एनडीए में वापसी कर सकते हैं।
वहीं, वे प्रधानमंत्री मोदी के विश्वस्त माने जाने वाले चिराग पासवान के चाचा हैं। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि पुलिस उन तक कभी भी गंभीरता से नहीं पहुंच पाएगी।
राजद के कुछ नेताओं ने इस घटना के बाद “भूरा बाल साफ करो” जैसे पुराने नारे और जातीय उन्माद भड़काने वाले बयान देना शुरू कर दिया है, जिससे राज्य में तनाव का माहौल गहराता जा रहा है। जानकारों की मानें तो यह सब आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को देखते हुए किया जा रहा है ताकि भय और ध्रुवीकरण के जरिए वोटबैंक साधा जा सके।
चंदन मिश्रा: अपराधी या मोहरा?
यह भी ध्यान देना जरूरी है कि खुद चंदन मिश्रा कोई निर्दोष नागरिक नहीं था। उसके खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले थे, और वह हाल ही में जमानत पर बाहर आया था। माना जा रहा है कि यह हत्या आपसी गैंगवार का हिस्सा थी, जिसे सियासत और प्रशासन की चुप्पी ने और आसान बना दिया।
निष्कर्ष:
बिहार फिर उसी मोड़ पर…
चाहे वह 17 जुलाई को चंदन मिश्रा की सनसनीखेज हत्या हो या 13 जुलाई को अभिषेक वरुण की संदिग्ध मौत- दोनों घटनाएं यह साबित करती हैं कि बिहार एक बार फिर अराजकता के उसी पुराने दौर की ओर लौट रहा है, जिसे एक समय ‘जंगलराज’ कहा जाता था।
अब यह देखना बाकी है कि क्या बिहार सरकार और पुलिस प्रशासन इस गिरती स्थिति को संभाल पाएंगे, या फिर 2025 का चुनावी साल अपराधियों और राजनेताओं की सांठगांठ का नया अध्याय बनकर उभरेगा।
न्यूज़ एडिटर बी के झा की रिपोर्ट-