नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अब तक देश के 22 राज्यों में अपने नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है, लेकिन देश के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अभी भी प्रदेश अध्यक्ष को लेकर असमंजस बना हुआ है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, अब यह फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के बाद ही लिया जाएगा। यही नहीं, यदि योगी सरकार के किसी मौजूदा मंत्री को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तो सरकार में बड़ा फेरबदल तय माना जा रहा है।
कोरम पूरा, लेकिन देरी रणनीतिक
भाजपा के संगठनात्मक चुनावों के लिए देशभर में 37 प्रदेश इकाइयां हैं, जिनमें से 22 में अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। इससे राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव का कोरम पूरा हो गया है, यानी यह चुनाव अब कभी भी कराया जा सकता है। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने फिलहाल इस पर भी कुछ दिन का विराम लिया है- क्योंकि उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष पद को लेकर क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन साधने की कड़ी चुनौती सामने है।
भाजपा एक ऐसे नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है जो समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठजोड़ का प्रभावी जवाब दे सके और ब्राह्मण मतदाताओं में हो रहे कथित असंतोष को भी थाम सके। इस दिशा में स्वतंत्रदेव सिंह और धर्मपाल सिंह लोधी के नाम चर्चा में हैं।
सरकार में भी बदलाव की जमीन तैयार
यदि भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष योगी मंत्रिमंडल से चुना गया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में फेरबदल तय माना जा रहा है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि 2027 से पहले ही राज्य सरकार के भीतर आवश्यक राजनीतिक संतुलन और जातीय समीकरण दुरुस्त कर लिए जाएं।
खास बात यह है कि इस संभावित फेरबदल में ब्राह्मण और ओबीसी समुदाय के नेताओं को प्रमुख भूमिका दी जा सकती है। मथुरा से विधायक और पूर्व मंत्री श्रीकांत शर्मा की सरकार में वापसी लगभग तय मानी जा रही है। हालांकि यह भी चर्चा है कि श्रीकांत शर्मा और योगी आदित्यनाथ के बीच राजनीतिक मतभेद लंबे समय से रहे हैं, ऐसे में उनकी वापसी को कुछ विश्लेषक योगी के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति के तौर पर भी देख रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष चुनाव की जटिल प्रक्रिया
भाजपा के आंतरिक चुनाव नियमों के मुताबिक, हर विधानसभा क्षेत्र से एक प्रतिनिधि वोट करता है। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के अलावा 20% सांसद और विधायक भी इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं। हालांकि, जिलाध्यक्षों को मतदान का अधिकार नहीं होता।
प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में वोटर लिस्ट तैयार करने, नामांकन, नाम वापसी और घोषणा की प्रक्रिया में कम से कम 4 दिन का समय लगता है, इसलिए यदि नेतृत्व चाहे भी तो प्रक्रिया में कुछ वक्त लगेगा।
महाराष्ट्र और यूपी में एक साथ बदलाव की रणनीति
केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, महाराष्ट्र में भी सरकार में बड़े फेरबदल की संभावना जताई जा रही है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इन दोनों राज्यों में एक साथ बदलाव कर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की पुनर्गठन रणनीति को मजबूती देना चाहता है। ऐसे में पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा के साथ-साथ इन दोनों राज्यों में संगठनात्मक और सरकार स्तर पर बड़े फैसलों की उम्मीद की जा रही है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में भाजपा के अगले प्रदेश अध्यक्ष और योगी सरकार के संभावित फेरबदल को लेकर पार्टी के भीतर गंभीर मंथन जारी है। राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा होते ही अगले कुछ हफ्तों में भाजपा के भीतर बड़े बदलावों की पटकथा लिखी जा सकती है, जिसका सीधा असर 2027 के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। श्रीकांत शर्मा की वापसी और ओबीसी- ब्राह्मण संतुलन की कोशिशें इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि भाजपा अपने सबसे अहम राज्य को लेकर कोई भी फैसला बेहद सतर्क रणनीति के तहत लेने जा रही है।