Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देने में की जा रही देरी पर गंभीर नाराजगी जताई है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की जगह वर्तमान प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे को “गंभीर प्रशासनिक मामला” करार देते हुए दो सप्ताह के भीतर सुनवाई तय करने की बात कही है।
नियुक्तियों में हो रही देरी
पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रशांत भूषण ने दलील दी कि केंद्र सरकार कुछ जजों के नाम चार साल से अधिक समय से लंबित रखे हुए है, जिससे उनकी वरिष्ठता और नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। दातार ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें 2019, 2020 और 2022 में दोहराए गए नाम आज तक स्वीकृत नहीं हुए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि नियुक्तियों में हो रही देरी के खिलाफ लंबित याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई की जाए।
प्रशासनिक स्तर पर मामले समझाने की कोशिश
दातार ने यह भी बताया कि देरी से क्षुब्ध होकर दिल्ली और मुंबई के कई वरिष्ठ वकीलों ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक महिला वकील, जो नेशनल लॉ स्कूल की टॉपर थीं, उनका नाम भी मंजूर नहीं हुआ। इस पर प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर मामले को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन केंद्र की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
संयम बरतने की अपील
प्रशांत भूषण ने यह सवाल भी उठाया कि जब विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय-सीमा तय की जा सकती है, तो जजों की नियुक्ति में देरी पर भी स्पष्ट सीमा क्यों नहीं होनी चाहिए? हालांकि, पीठ ने विचाराधीन मामलों का उल्लेख न करने की सलाह देते हुए सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की।
कुछ बातें अनकही ही रहने देना बेहतर
गौरतलब है कि दिसंबर 2023 में तत्कालीन न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने भी इस देरी पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “कुछ बातें अनकही ही रहने देना बेहतर है।” उस समय भी पीठ ने केंद्र द्वारा कॉलेजियम की सिफारिशों पर की जा रही ‘चयन और चुनाव’ की नीति को लेकर चिंता जताई थी।
केंद्र के खिलाफ अवमानना कार्रवाई
उल्लेखनीय है कि इस मामले में ‘एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु’ सहित अन्य याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिनमें न्यायालय से केंद्र के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई है। याचिकाओं में आरोप है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के 2021 के उस फैसले का पालन नहीं कर रही जिसमें कॉलेजियम की सिफारिशों पर तय समय में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला अहम संकेत
यह मुद्दा न केवल न्यायपालिका की स्वायत्तता बल्कि न्यायिक नियुक्ति प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी बड़ा सवाल बनकर उभरा है। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दिशा में अहम संकेत दे सकता है।
न्यूज़ एडिटर बी के झा की रिपोर्ट-