• Home  
  • सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को आपराधिक मामले से अलग रखने वाला अपना आदेश लिया वापस
- देश

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को आपराधिक मामले से अलग रखने वाला अपना आदेश लिया वापस

उत्तम भारत, नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामले की सुनवाई से अलग रखने और उन्हें एक अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाने के अपने अभूतपूर्व आदेश को शुक्रवार को वापस ले लिया। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश बी […]

उत्तम भारत, नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामले की सुनवाई से अलग रखने और उन्हें एक अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाने के अपने अभूतपूर्व आदेश को शुक्रवार को वापस ले लिया।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई से प्राप्त एक पत्र पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि उसका (शीर्ष अदालत का) इरादा संबंधित न्यायाधीश को शर्मिंदा करने या उन पर आक्षेप लगाने का नहीं था।
उच्च न्यायालय के आदेश को हालांकि “अवैध और विकृत” बताते हुए शीर्ष अदालत ने इस मामले पर विचार करने का काम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ दिया।

मुख्य न्यायाधीश रोस्टर के मास्टर

पीठ ने कहा, “हम पूरी तरह से स्वीकार करते हैं कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रोस्टर के मास्टर हैं यानी वह तय कर सकते हैं कि किस मामले को कौन से न्यायाधीश को सौपा जाए। ये निर्देश (शीर्ष अदालत का) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की प्रशासनिक शक्ति में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं।

मामला हद पार कर जाता है

पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब मामले कानून के शासन को प्रभावित करते हैं, तो यह न्यायालय सुधारात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य होगा। पीठ ने कहा, “हालांकि, जब मामला एक हद पार कर जाता है।‌ जब संस्था की गरिमा खतरे में पड़ जाती है तो अपीलीय क्षेत्राधिकार में भी हस्तक्षेप करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य बन जाता है।

अदालत के गुस्से का करना पड़ा सामना

न्यायमूर्ति कुमार को शीर्ष अदालत के गुस्से का सामना करना पड़ा जब उन्होंने सामान की आपूर्ति के लिए शेष राशि का भुगतान न करने से संबंधित एक मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देते हुए कहा कि दीवानी मुकदमे में पैसा वसूलने में वर्षों लग जाएंगे।

उच्च न्यायालय स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में गड़बड़

पीठ ने अपने चार अगस्त के आदेश में उच्च न्यायालय के एकल पीठ के न्यायाधीश के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि संबंधित न्यायाधीश ने न केवल खुद को बदनाम किया है, बल्कि न्याय का भी मजाक उड़ाया है। पीठ ने कहा, “हम यह समझने में असमर्थ हैं कि उच्च न्यायालय स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है। कई बार हम यह सोचकर हैरान रह जाते हैं कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी विचार से पारित किए जाते हैं या यह कानून की सरासर अज्ञानता है। जो भी हो, ऐसे बेतुके और गलत आदेश पारित करना अक्षम्य है।

भुगतान के लिए लंबित आपराधिक कार्यवाही

उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने 05 मई, 2025 के एक आदेश द्वारा कानपुर नगर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-एक की अदालत में अभियुक्त मेसर्स शिखर केमिकल्स को आपूर्ति किए गए सामान के बकाया भुगतान के लिए लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।

शेष राशि वसूलने में काफी समय

न्यायाधीश ने इसे उचित ठहराते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता को दीवानी मुकदमा दायर करके शेष राशि वसूलने में काफी समय लग सकता है। उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था, “यह आदेश इस न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में हमारे कार्यकाल में अब तक देखे गए सबसे खराब और सबसे गलत आदेशों में से एक है।

पद छोड़ने तक कोई आपराधिक निर्णय

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से संबंधित न्यायाधीश से वर्तमान आपराधिक निर्णय तुरंत वापस लेने का अनुरोध किया था। अदालत ने आगे निर्देश दिया था कि संबंधित न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने तक कोई आपराधिक निर्णय नहीं सौंपा जाएगा। पीठ ने कहा, “यदि किसी समय उन्हें एकल न्यायाधीश के रूप में जिम्मेवारी दी भी जाती है, तो उन्हें कोई आपराधिक निर्णय नहीं सौंपा जाएगा।

न्यायाधीश का एकमात्र गलत आदेश नहीं

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि वह यह निर्देश जारी करने के लिए बाध्य है, क्योंकि उसे ध्यान में है कि वर्तमान आदेश संबंधित न्यायाधीश का एकमात्र गलत आदेश नहीं है जिस पर उसने पहली बार गौर किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता का मामला स्पष्ट और सीधा था। उसने दावा किया कि वह एक बकाया विक्रेता है।

शेष राशि का भुगतान आज तक नहीं किया गया

उसने याचिकाकर्ता को धागे के रूप में 52,34,385 रुपए का माल दिया, जिसमें से 47,75,000 रुपये की राशि थी। हालांकि, शेष राशि का भुगतान आज तक नहीं किया गया है। उसने प्राथमिकी दर्ज करने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने विवाद की दीवानी प्रकृति के कारण इसे अस्वीकार कर दिया था। शीर्ष अदालत की पीठ ने न्यायमूर्ति कुमार के फैसले के संबंध में कहा था, “हमने पिछले कुछ समय में ऐसे कई गलत आदेशों पर गौर किया है।”

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्तम भारत में, हम सत्य की शक्ति, समुदाय के मूल्य और सूचित नागरिकों के महत्व में विश्वास करते हैं। 2011 में स्थापित, हमने अपने पाठकों को विश्वसनीय समाचार, व्यावहारिक विश्लेषण और महत्वपूर्ण कहानियाँ प्रदान करने पर गर्व किया है।

Email Us: uttambharat@gmail.com

Contact: +91.7678609906

Uttam Bharat @2025. All Rights Reserved.